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स्वतंत्रता दिन पर सभी भारतीयों के लिए संदेश

परम पूज्य महर्षि श्री पुनीताचारीजी द्वारा देशवासियों को उदबोधन

भारत देश के सज्जनो एवं सन्नारियो,
इस वसुधा पर यह आर्यावर्त अनुपम व दिव्य भूमि है - अपनी संस्कृति, सभ्यता, दर्शन व महान् विभूतियों के अवतरण के कारण और इसलिए भी कि मानवता के सूर्य की किरणें सर्वप्रथम यहीं प्रस्फुटित हुई । परन्तु काल के प्रवाह में आज इसकी अस्मिता, इसकी गरिमा और वैभव फीका पड़ता जा रहा है, क्रमशः लुप्त होता जा रहा है।

आज प्रत्येक देशवासी का यह प्रथम कर्तव्य है कि जिसने भी इस भारत भूमि पर जन्म ग्रहण किया है, चाहे वह किसी भी वर्ण, धर्म, संप्रदाय के चोले में क्यों न हो, इस देश को वफादारी के साथ पतन और विनाश के गहर में गिरने से बचाये तथा फिर से इसके अतीत के गौरव को स्थापित करने में कटिबद्ध हो ।

यह संस्कार-सिंचन तभी संभव हो सकेगा, सात्विकता और दिव्यता का प्रकाश तभी ही फैलेगा जब कि इस राष्ट्र में जन्मा हुआ प्रत्येक नागरिक अपने आपको सम्पूर्ण रूप से निःस्वार्थ भाव से समर्पित समझे और भारतीय संस्कृति के त्याग, समर्पण, अहिंसा, और परोपकार के मार्ग पर चले । स्वयं को अनीति, स्वार्थ, भ्रष्टाचार, बेईमानी, लोभ, लालच, भेदभाव इत्यादि के मार्ग से हटायें और मानवता के मूल्य को समझे । अपने में राष्ट्रीय चरित्र की ज्योति प्रज्वलित करे, भारत के उत्थान में समस्त मानव जाति की जाग्रति के महत्त्व को समझे । देशभक्ति की चिरंतन दीपशिखा प्रकटाये | विश्व बन्धुत्व के मधुर गीत की स्वर-लहरी निनादित करे, प्राणिमात्र के प्रति प्रेम और शान्ति की सरिता प्रवाहित करे । सेवा जीवन का मूल मंत्र बने एवं भेद-भाव की दीवाल गिरा दे । यह तभी संभव है जब कि मानव भौतिकता की दौड़ से थोड़ा हट कर आध्यात्मिकता की तरफ जाये, जीवन की यथार्थता समझे एवं नाम, रूप, रंग, वर्ण, संप्रदाय के पिंजड़े में बद्ध इस जीव में आत्म-ज्ञान की जिज्ञासा उत्पन्न हो ।

इस सत्य-पथ पर प्रत्येक देशवासी चलेगा तभी विश्व कल्याण और विश्वबन्धुत्व की भावना का विकास होगा और "वसुधैव कुटुंबकम्" की रचना हो सकेगी । उस क्षण मनुष्य मनुष्य के खून का प्यासा नहीं होगा, झूठे नेतृत्व की भावना नहीं होगी तथा नीतिहीन राजनीति का दलदल नहीं होगा।

आज समस्त समाज स्वार्थ, मिथ्या, प्रतिष्ठा, झूठे अहं, मानसिक अस्वस्थता और चारित्रिक पतन के व्यूह में फँसा हुआ है। जीवन की सूझ-बूझ और आदर्श दृष्टि उसने खो दी है। इसी कारण प्रत्येक का जीवन दहक रहा है, लूटपाट मची है और चारों ओर विध्वंस दिखाई दे रहा है। जीवन से उस अनन्त सत्ता की आस्था और विश्वास पलायन कर गये हैं। यही कारण है कि सभी के जीवन में नर्क उत्पन्न हो रहा है, यातनाओं का डेरा आ बसा है। किसी के जीवन में शांति दिखाई नही देती । आज मानवी अपने मूल स्वरूप को जाने सिवाय क्षणभंगुर, नाशवंत, पैसा, पद, प्रतिष्ठा की तरफ दौड़ लगा रहा है, समझ में नहीं आता कि जिसमें उसकी आसक्ति, ममता, मोह बना हुआ है, उसे अंत में तो छोड़ कर जाना ही होगा तो क्यों नहीं सत्य और प्रामाणिक जीवन व्यतीत कर कुछ ऐसी आध्यात्मिक संपत्ति कमा ले जो सदा अपने साथ रहे।

जीवन का उत्थान, स्वर्ग का निर्माण, आनंद की वर्षा तो तभी हो सकती है जब प्राचीन ऋषि-मुनियों के बताए रास्ते पर चलें एवं जीवन उस चिन्मय प्रभु कि पति अर्पित हो । इस आर्यावर्त के उत्थान हेतु यह भूमि फिर से देव-भूमि और स्वर्ग बने, चारों ओर शांति के गीत प्रवाहित हों, देश-विदेश के लोग इसका अनुकरण करें, भौतिकता के कीचड़ से निकलकर आध्यात्मिक व उदात्त जीवन की ओर विकास करें ऐसे प्रकाश स्तम्भ का हमें निर्माण करना है।

इस महान् यज्ञ में इस देश की युवा पीढ़ी को अपनी आहुति देनी है। युवा वर्ग को प्रतिज्ञा करनी है कि - वे किसी भी हालत में किसी के भी दुष्प्रभाव में नहीं आयेंगे, प्रलोभन में नहीं फँसेंगे, सत्ता का मोह उनमें उत्पन्न नहीं होगा, भ्रष्टाचार उन्हें कभी आकर्षित नहीं करेगा, अज्ञान के अहंकार में भूल से भी नहीं डूबेंगे ।

युवा वर्ग में शक्ति है, नवनिर्माण करने की लगन है । बस एक बार वे शपथ लें इस मातृभूमि के उत्थान की, नीति, सत्य, निष्ठा, ईमानदारी, न्याय की रक्षा की । उन्हें चाहे गरीबी में जीना पड़े, एक वक्त भोजन से संतोष करना पड़े, झोंपड़ी में रहकर गुज़र करनी पड़े परंतु उनका दृढ़ निश्चय होना चाहिए कि वे सच्चे, ईमानदार, देशभक्त नागरिक के पथ से न तो विचलित होंगे, न हटेंगे, न मुँह मोड़ेंगे। यदि युवा वर्ग ने कमर कस ली तो भ्रष्टाचारी समूल नष्ट हो जायेंगे, इन्सानियत के वन में बारूद लगाने वाले जल्लाद मिट जायेंगे ।

देश के नवयुवको ! इस देश और दुनिया का सुन्दर भविष्य आपके हाथों में है। यह जागने का समय है, शारीरिक व मानसिक स्वस्थता प्राप्त कर मन चित्त बुद्धि से शुद्धि व आत्म निरीक्षण का समय है। योग द्वारा अपनी शक्तियों को केन्द्रित करो और विनाश के राक्षस को सदा के लिए मिटा दो । ध्यान-योग द्वारा आपमें ऐसी दैविक शक्ति प्रस्फुटित होगी जिससे मानवता की रक्षा होगी और मानवीय गुण पल्लवित, पुष्पित व फलित होंगे जिससे सम्पूर्ण पृथ्वी महक उठेगी, अलंकृत हो जायेगी ।

अब अस्थिर, अव्यवस्थित, अशांत, स्वार्थपरायण, दंभ-पाखंड-असत्य से भरपूर इस समाज का भार शायद पृथ्वी सहन न कर सकेगी। पवन, पानी, अग्नि अपनी मर्यादा को छोड़ने लग जाए, विनाश तांडव करने लगे, पाप के बोझ से पृथ्वी काँप उठे, विनाशकारी झंझावात पैदा हो जाये, इसके पहले भारत की भावी संतति, युवा वर्ग तथा समस्त अबाल वृद्ध चेतित हों और कथा प्रतीत होने वाली बात को यथार्थ मे परिवर्तित कर दें। अभी समय है और यदि समय के रहते आप लोग सावधान न हुए तो यह कालचक्र अपनी आग में सब कुछ भस्म कर डालेगा । प्राचीन काल में भी इस प्रकार का समय उपस्थित होने पर तत्कालीन ऋषि-महर्षियों ने इसी प्रकार का आह्वान किया था, न मानने पर महाभारत की विनाशकारी आग में सब कुछ भस्मीभूत हो गया, बहुत से परिवारों में तो रोने वाले भी न बचे । अतः ध्यान-योग द्वारा मानवीय गुणों की सुगंध चारों ओर फैला दो, शांति का स्त्रोत बहा दो ।

उठो ! जागो ! बढ़ो ! और राष्ट्र को विश्व का सूत्रधार बना दो ।

समस्त अनन्त की शुभेच्छाएँ,
कल्याणमस्तु ।


~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज,
गिरनार साधना आश्रम,जूनागढ़

॥ हरि ॐ तत्सत् जय गुरु दत्त ॥





"अब अस्थिर, अव्यवस्थित, अशांत, स्वार्थपरायण, दंभ-पाखंड-असत्य से भरपूर इस समाज का भार शायद पृथ्वी सहन न कर सकेगी। पवन, पानी, अग्नि अपनी मर्यादा को छोड़ने लग जाए, विनाश तांडव करने लगे, पाप के बोझ से पृथ्वी काँप उठे, विनाशकारी झंझावात पैदा हो जाये, इसके पहले भारत की भावी संतति, युवा वर्ग तथा समस्त आबाल वृद्ध चेतित हों और कथा प्रतीत होने वाली बात को यथार्थ मे परिवर्तित कर दें। अभी समय है और यदि समय के रहते आप लोग सावधान न हुए तो यह कालचक्र अपनी आग में सब कुछ भस्म कर डालेगा । प्राचीन काल में भी इस प्रकार का समय उपस्थित होने पर तत्कालीन ऋषि-महर्षियों ने इसी प्रकार का आह्वान किया था, न मानने पर महाभारत की विनाशकारी आग में सब कुछ भस्मीभूत हो गया, बहुत से परिवारों में तो रोने वाले भी न बचे । अतः ध्यान-योग द्वारा मानवीय गुणों की सुगंध चारों ओर फैला दो, शांति का स्त्रोत बहा दो । "

~प.पू. महर्षि पुनिताचारीजी महाराज




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